Sunday, May 27, 2007

जिस यार की तलाश थी....

जिस यारकी तलाश थी साथी नही मिलें ।

उम्र गुजरी उम्मीदमें वो गुल नही खिले ।



राह पे बैठ इंतजार, अब क्या कीजिए ।

यहाँ छोड़ धूल पैर की, गुम कही गए ।



कहाँ जाइएगां अब, कहाँ ढूंढिए ऐ दिल ।

दफन करके वो मेरे, अरमान चल दिए ।



थर-थराते लबों से, दास्तां-ए-दिल कही ।

सब मुस्करा दिए और हँस के चल दिए।

5 comments:

  1. थर-थराते लबों से, दास्तां-ए-दिल कही ।

    सब मुस्करा दिए और हँस के चल दिए।
    वाह !! क्या बात कही !!

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  2. बहुत बढ़िया भाई-

    थर-थराते लबों से, दास्तां-ए-दिल कही ।

    सही है!!

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  3. शायद मैने पहले आप को नहीं बताया

    खुशियां बांट ली और गम तनहा सहे
    हम से दीवाने तो बस यूंही जिया करते हैं

    अब किसी के आगे कभी मत रोना

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  4. रो रो के उनकी याद मे, आंसू के टब भरे
    वो आये बेरहम और नहा के चल दिए। :D

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  5. बाली जी हमे तो आपकी कविता मे हास्य व्यग नजर नही आया जैसा विकाश जी ने लिखा विकाश जी ने जो वो मौके पर लिखा वो तो कबिल ए तारीफ है, आपने सन्जीदगी से कविता लिखी है लिखते रहे . . .

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