Monday, August 6, 2007

झगड़नें वालों के नाम


अब की बार जो बादल बरसा

रपट गिरे हम आँगन में ।

अपनों से ही खफा हो गए

जैसे कोई बेगानों से ।

कोई इन्हें समझाए यारों

दोस्त मिलते हैं किस्मतवालों को ।

आपस की रंजिश में पड़कर

खोना ना इन दिवानों को ।

सब की गुस्ताखी की सजाएं

यारों हम को दे डालों ।

हँसते-हँसते सह लेगें हम

उठते हुए तूफानों को ।

रंजिश में डूबे यारों,

जरा हमारी बात सुनों--

चार दिनों तक सजनी है महफिल

लौटेंगे फिर, निज धामों को ।


2 comments:

  1. सच्चा गीत… क्या लय बनी है…। अतिसुंदर!!!

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