Sunday, March 16, 2008

अकेलापन



रात अंधेरी
मन डाले फेरी
दूर कही पर
फिर दिख रही है
पड़ी हुई इक
सपनों की ढेरी।

रूकता नही
पल भर भी
बींनने निकला है
बचपन कही
मिल जाए
मन फिर से
खिल जाए
लेकिन
इतनी अच्छी
कहाँ
किस्मत ये मेरी।

जैसे-जैसे मैं
हो रहा बूढा हूँ
फिर पीछे
लौटनें को
मन मेरा करता है
आहें, नित भरता है
जो पीछे छूटा था
वही तो
आगे है
ना जानें फिर भी
क्यूँ ये मन
भागे है
आदत है मेरी।

पल-पल में मेरे शब्द
अर्थ बदल जाते हैं
कल मेरे साथ थे
आज चिड़ाते हैं
सब समय का खेला है
जीवन को मैनें तो
ऐसे ही धकेला है
बिल्कुल अकेला है
कहानी
ये किस की है
तेरी या मेरी।

रात अंधेरी
मन डाले फेरी
दूर कही पर
फिर दिख रही है
पड़ी हुई इक
सपनों की ढेरी।

14 comments:

  1. पहले तो आपको इस सुन्दर कविता के लिए बधाई।

    रूकता नही
    पल भर भी
    बींनने निकला है
    बचपन कही
    मिल जाए
    मन फिर से
    खिल जाए
    लेकिन
    इतनी अच्छी
    कहाँ
    किस्मत ये मेरी।



    बहुत ही अचछी लाइनें।

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  2. रूकता नही
    पल भर भी
    बींनने निकला है
    बचपन कही
    मिल जाए
    मन फिर से
    खिल जाए
    लेकिन
    इतनी अच्छी
    कहाँ
    किस्मत ये मेरी।
    paramjit ji,bahut bahut badhai,bahut bhavpurn kavita hai,sundar panktiyan.kash bachpan lautkar aata,do pal main us chutpan ko jee pata.

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  3. परमजीत जी - सफर में पुराने साथी हैं आप, हम सब की हौसला अफजाई के - इस कविता की यह पंक्तियाँ बहुत ही दिल छूने वाली लगीं - " जो पीछे छूटा था/ वही तो/ आगे है/ ना जानें फिर भी/ क्यूँ ये मन/ भागे है" - मन की बात प्रेम से लिखें, हम साथ हैं - साभार मनीष

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  4. सच ही कहूंगा
    झूठने या झूठ कहने
    की नहीं आदत मेरी

    भाव अच्‍छे हैं
    विचार सच्‍चे हैं
    गलतियां हैं वो
    बिंदियों की
    ऊंगलियों की
    नहीं बालियों की
    परम को जीतने
    वाले बाली हैं आप
    गलतियां करते हैं
    बिंदियों की बार बार
    लगातार
    इस पर दें ध्‍यान
    फिर अवश्‍य नापेंगे
    आप आसमान
    धारणा है मेरी
    किस्‍मत है तेरी

    फिर लगा एक और
    कविता की फेरी
    अवश्‍य जगेगी
    जीतेगी किस्‍मत तेरी
    कामना मेरी तेरी चितेरी.

    - अविनाश वाचस्‍पति

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  5. अविनाश जी,धन्यवाद। कोशिश करूँगा सुधारनें की।

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  6. रात अंधेरी
    मन डाले फेरी
    दूर कही पर
    फिर दिख रही है
    पड़ी हुई इक
    सपनों की ढेरी।

    kya baat hai...
    fir dikh rahi hai
    padee huee eek
    sapanon kee dheree...

    fantastic....

    badhiya rachana, abhivyakti...

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  7. जैसे-जैसे मैं
    हो रहा बूढा हूँ
    फिर पीछे
    लौटनें को
    मन मेरा करता है


    Beautiful poem! Aapki yeh poem padh mera dil yahi kah raha hai kahne ko....

    "Ye daulat bhi le lo, ye shoharat bhi le lo
    bhale chhin lo mujhse meri javaani
    magar mujhko lauta do bachapan ka saavan
    vo kagaz ki kashti, vo barish ka pani...."

    rgds

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  8. बहुत बढिया कविता के साथ आपका फोटों देखकर बहुत खुशी हुई.
    दीपक भारतदीप

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  9. परमजीत जी बहुत हि सुनदर ओर मन के तारो को छुती हू आप की यह कविता हे, धन्यवाद

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  11. अत्यन्त सुन्दर कविता के लिए बधाई।

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