Thursday, July 17, 2008

क्षणिकाएं

कुछ पुरानी क्षणिकाएं

एहसान

तुम मेरी बात पर

कभी ना नही कहना।

मेरे बोझ को सदा

अपना समझ

सहना।

२.

सरकार

वादे और सपनें बेचनें की कला

सिर्फ

अपना भला।

३.

नेता

कुत्तों का मालिक

जनता का लुटेरा

एक बड़े घर में

जबरन

डाले है डेरा

४.

वामपंथी

इन के झंडें का रंग लाल

इन के मुँह का रंग लाल

इन का भोजन का रंग लाल

फिर भी कुर्सी पर बैठें हैं।

इसे कहते हैं हमारे देश में

प्रजातंत्र

है ना कमाल!!!

12 comments:

  1. वापसी को बनाये रखिए और रचनाएँ इसी तरह प्रस्तुत करते रहा करिए!

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  2. बहुत सही. अब नियमितता बरकरार रखें भाई.

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  3. अजी आप इतनी सुन्दर कवितये लिखते हे, है ना कमाल!!!

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  4. Bahut badia Paramjeet...

    Too good !!

    Keep it up !!

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  5. बधाई स्वीकारें बाली जी, सच्चाई कूट-कूट कर भरी है आपकी इन क्षणिकाओं में. खासकर अन्तिम क्षणिका पढ़कर बाबा नागार्जुन के शब्द याद आ गए - "इसी पेट के अन्दर समा जाए सर्वहारा - हरी ॐ तत्सत"

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  6. bali ji thanks for your comments n your char lineye r too good

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  7. क्या बात है परमजीत बाली जी। मजा आ गया
    दीपक भारतदीप

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