Saturday, November 29, 2008

मेरा भारत महान है

अपनी नाकामियों को
आपस में संवेदनाएं प्रकट कर
भूल जाना।
एक दूसरे पर
अरोप-प्रत्यारोप लगा
देश की जनता को भटकाना ।
यह हमारे देश की
सभी सरकारों का काम है।
इसी लिए
"मेरा भारत महान है।"

हमें भविष्य के सपनें देखनें
अच्छे लगते हैं।
इसी लिए हम
वर्तमान में नही जीते।
हर क्षेत्र में सदा
नजर आते हैं रीते।
हमारी यह सोच अब आम है।
इसी लिए
"मेरा भारत महान है।"

सवाल यह नही है कि
आतंकवादी आतंक फैलाते हैं।
सवाल यह है कि
हमें सभी आतंकवादी
धार्मिक क्यूँ नजर आते हैं?
हमें समझना होगा
हमारी इस सोच का
आधार क्या है?
हमारे नेताओं का
व्यापार क्या है?
हमारी सोच को
इस तरह बदलना
किसका काम है।
जानतें हम सभी हैं।
लेकिन कुछ करते नहीं।
इसी लिए
मेरा भारत महान है।

मेरे देशवासीयों
अब तो जागो!
अपने मत कि गोलियों से
ऐसे नेताओं के सीनें को दागो।
पार्टियों के नाम को नहीं,
अच्छे इन्सानों को जिताओ।
इन नालायकों से
अपनें देश को बचाओ।
यदि तुम कर सके
तो यही सबसे बड़ा
तुम्हारा काम है।
तभी तुम कहने के हकदार हो-
"मेरा भारत महान है।"

Tuesday, November 18, 2008

कमजोर आदमी

पुन:आवृति
यह पलकें

सदा भीगी रहती हैं।

कभी धूँए से

कभी आग से,

कभी दर्द से।


अब कब और कैसे सूखेगा पानी?

कब खतम होगी यह कहानी?

"वो" भी इन से मुँह फैर बैठा है।

पता नही इन से क्यों ऐंठा है?

हरिक आदमी अपनी ताकत

इसी पर अजमाता है।

सताए हुए को और सताता है।





आज फिर

एक कहानी याद हो आई?

जो किसी ने थी सुनाई।


अर्जुन ने एक बार

जब वह वन में घूम रहे थे

श्रीकृष्ण के साथ , पूछा था-

"भगवान!आप सताए हुए को क्यों सताते हो?"

"जब कि हमेशा उसे अपना बताते हो।"


कृष्ण बोले-"अभी बताता हूँ.."

"पहले मेरे बैठनें को एक ईट ले आओ।"

अर्जुन तुरन्त चल दिया।


लेकिन बहुत देर बाद ईंट ले कर लौटा।

कृष्ण ने उसे टोका
और पूछा-"इतनी देर क्यों लगा दी?"


"पास में ही तो दो कूँएं थे वही से क्यों नही उखाड़ ली?"

अर्जुन बोला-"प्रभू! वह टूटे नही थे,ईट कैसे निकालता?"

कृष्ण बोले-"मै भी तो इसी तरह सॄष्टी को हूँ संम्भालता।"



टूटे को सभी और तोड़ते हैं।

मजबूत के साथ अपने को जोड़ते हैं।

ऐसे में,

कैसे कमजोर आदमी को

संम्बल ,सहारा मिलेगा।

क्या उस का चहरा भी

कभी खिलेगा?

Thursday, November 13, 2008

गुरू नानक देव जी के पावन जन्मदिवस पर

गुरू नानक देव जी के पावन जन्मदिवस पर जो की १३ नवम्बर२००८ को
मनाया जा रहा है।आप सब को बहुत-बहुत बधाई।


गुरू नानक देव जी का जन्म १४६९ को १५ अप्रेल को पंजाब के तलवंडी नामक एक गाँव में हुआ था। जो अब पाकिस्तान में है।उन का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था।उन के पिता का नाम मेहता कालू था और माता का नाम माँ तृपता जी था। उन की एक बड़ी बहन थी जिसका नाम बीबी नानकी जी था।

वह बचपन से ही बहुत मेधावी व शांत स्वाभाव के थे। उन में बचपन से ही प्रभू के प्रति प्रेम व समर्पण की भावना थी। कहा जाता है कि वह जब पैदा हुए थे रोने की बजाए हँसते हुए पैदा हुए थे। उन के जीवन में अनेक ऐसी घट्नाएं हुई जो उन के अवतारी पुरूष होनें का आभास कराती थी।

जब वह कुछ बड़े हुए तो उन्हें विधा प्राप्ती के लिए भेजा गया। अक्षरज्ञान प्राप्ती के बाद,उन्होनें अपनें गुरू से कहा कि "आप अपनें शिष्यों को सच्ची व नेक बातें बताईए...और साथ ही प्रभू के बारे में बताएं।’यह सुन उन का गूरू उन से बहुत प्रभावी हुआ। वहाँ उन्होनें अपनें गुरू को बहुत -सी प्रभु के बारे में गहन बातें भी बताई।

नौ साल की उमर में उन्हें हिन्दू परिवार में जन्म के अनुसार जनेऊं धारण करनें के लिए प्रेरित किया गया। लेकिन जब उन्हें जनेऊं पहनानें का समय आया तो उन्होनें जनेऊं पहननें से साफ इंनकार कर दिया। इस पर जनेऊं धारण संस्कार करवानें वाले पंडित ने पूछा कि आप जनेऊं पहननें से क्यों इंनकार कर रहे हैं?तब उन्होनों कहा कि इस जनेऊं के धागॊं को बाँधनें से क्या मेरे भीतर सत्य,संतोष,अहिंसा...आ जाएगी? यह धाँगा तो पुराना होनें पर टूट जाएगा या घिस जाएगा। तब क्या होगा? इस से क्या मेरा मन अपने बस में रहेगा और मै बुराईयों से दूर रहूँगा?...यदि आप को मुझे जनेऊं पहनाना है तो ऐसा जनेऊं पहनाईएं जो कभी भी ना टूटे और ना ही कभी पुराना पड़े। यह सुन सभी उन के तर्क पर हेरान हो गए।

उन के बचपन की एक घटना है ।एक दिन गर्मीयों की तपती दोपहरी को गाँयें चरा रहे थे तो वहाँ बड़ा-सा छायादार पेड़ दिखा ,जिसे देख वह कुछ देर सुस्तानें के लिए उस के नीचें लेट गए। लेकिन उन्हें वहाँ लेटते ही नींद आ गई और वह गहरी नीदं में सो गए। उन्हें यह याद ना रहा कि वे यहाँ गाँयें चरानें आएं हैं। उन की गायों ने पास के एक खेत को ही चर डाला। जब शाम को उन की नीदं टूटी तो वह अपनी गायॊं को लेकर वापिस घर लौट गए।


इस घटना को गाँव के ही एक निवासी रायबुलार ने देखा और जाकर उस खेत के मालिक को खबर दी कि नानक की गायों ने तुम्हारा सारा खॆत चर लिआ है। यह सुन कर उस खेत के मालिक ने जाकर इस बात की शिकायत नानक के पिता मेहता कालू जी को दी।यह सुन कर वह बहुत गुस्सा हुए। उन्होनें नानक को बुलाया और डाँटा। लेकिन नानक देव चुपचाप उन की बातें सुनते रहे। इस के बाद नानक के पिता नें खेत के मालिक से कहा कि आप अपना कोई आदमी खेत पर भेजों ताकी पता चल सके कि गायों ने कितना नुकसान किया है और तुम्हें कितना हर्जाना देना है। इस पर खेत के मालिक ने नौकर के साथ अपना एक विश्वसनीय आदमी उस के साथ भेजा। लेकिन वहाँ जाकर देखा कि खेत में कुछ भी नुकसान नही हुआ था। जब उन्होनें लौट कर यह बात बताई तो शिकायत कर्ता बहुत हेरान हुए।इस के बाद रायबुलार को बुलवा कर उस से पूछा कि तुमनें झूठ क्यों बोला। इस पर उसनें कहा कि मैनें झूठ नही बोला...लेकिन नानक की प्रभू भगती के प्रभाव से ऐसा हो गया होगा। कि खेत पहले जैसे हो गए। इसी तरह की अनेक घट्नाएं उन के जीवन में घटित हुई ।

जब उन के पिता ने देखा की नानक सदा प्रभू भक्ति में ही लगे रहते हैं तो उन्होनें उन्हें बीस रूपय देकर सच्चा सौदा कर धन कमानें के लिए भेजा। उन के संग उन का घरेलू नौकर भाई मरदाना भी उन के साथ था। उस समय व्यापार के लिए जाते हुए उन्हें रास्ते में,कई दिनों से भूखे साधु मिलें। उन साधुओं को देख कर उन का ह्रदय बहुत दुखी हुआ। तब उन्होनें अपने साथ आए नौकर मरदानें से कहा- पिता ने कहा था कि सच्चा सौदा करना। इन भूखे साधूओं को भोजन करानें से बड़ा सच्चा सौदा और क्या हो सकता है? यह कह कर उन्होनें सारे रुपये उन भूखे साधुओं के लिए भोजन पर खर्च कर दिए और घर लौट आए। उन्हें वापिस लौट कर आनें पर उन के पिता ने पूछा-"तुम व्यापार करने गए थे। कौन-सा व्यापार किया?"तब उन्होनें कहा आप ने सच्चा सौदा करनें को कहा था। इस से सच्चा सौदा कर के आया हूँ।" उन्होनें पूछा कितना लाभ कमाया? इस पर सारी बात उन्होनें अपने पिता को बताई।वह बात सुन कर उन के पिता ने उन्हें एक थप्पड़ जड़ दिया। इस पर उन की बड़ी बहन नानकी नें कहा की उन्हें ना मारें..क्यूँ कि उन की बहन उन्हें अवतारी बालक मानती थी।

जब उन के पिता ने देखा कि यह अभी भी अपनी प्रभू भक्ति में ही लगा रहता है , तो उन्होने उनका विवाह करा दिया। जिस से उन्हें दो संतानें प्राप्त हुई। जिन के नाम लक्ष्मी चंद और श्रीचंद जी थे।


सिख धर्म की नींव गुरू नानक देव जी ने ही रखी थी। वह सिखों के पहले गुरू थे।उन की लिखी रचनाएं "गुरू ग्रंथ साहिब" में दर्ज हैं।उन्होनें अपने जीवन काल में चार बड़ी यात्राएं की। यह यात्राएं उन्होनें अपनें विचारॊं को जन मानस तक पहुँचानें के लिए और उस समय लोगों में फैलें अंधविश्वास और कुरीतियों को दूर करनें के लिए की थी। आज ५००सालो से भी ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन उन के कहे उपदेश आज भी सार्थक हैं और जन कल्याण करनें वाले हैं।उस समय जब प्राकृतिक रहस्यों को जाननें का कोई साधन भी नही था। उन्होनें उस समय अपनी दिव्य दृष्टि से देख कर जो बातें कहीं हैं वह आज भी विज्ञान की कसौटी पर एक दम खरी उतरती हैं। "जपुजी साहिब" उन की प्रथम बाणी है। जिस में प्रभू के स्वरूप को बताते हुए,प्राकृति के अनेक रहस्यॊं को भी बताया गया है। "गुरु ग्रंथ साहिब" में आप के मन में उठनें वाले हरेक प्रश्न का उत्तर मिल जाता है। चाहे वह परमात्मा प्राप्ती से संबधित हो या प्राकृतिक रहस्यों से ।

उन्होनें २२ सितम्बर १९३९ को ६९ वर्ष की आयू में अपनी भौतिक देह का त्याग किया।

Sunday, November 9, 2008

खोया हुआ घर


कब चाहा है हमनें कभी

सभी का सुख

झाँक कर देखों जरा भीतर,

दूसरे का सुख तभी तक चाहते हैं

गर छुपा हो सुख अपना वहाँ पर।


पाया जब मैनें तो मेहनत यह मेरी

खो गया कुछ तो समझा लूटा किसी ने।

व्यर्थ का इक जाल बुन बैठा हूँ यारों-

झूठ को, अपना सच मानने पर।

दोष अक्सर दूसरों को दे रहा हूँ,

भय लगा रहता है ना देखूँ आईना पर।


देख वाहनों को पड़ोसी के घरों में,

हमको भी वाहन चाहिए

भले ना हो, जरूरत।

मन मेरा मुझको कहाँ ले जा रहा है?

नित नयी अभिलाषाओं का तुफान ला कर।


जिन्दगी अपनी ये क्या हो गई है?

आज अपनी हँसी भी खो गई है।

दोड़ना बस दोड़ते रहना यहाँ पर,

मंजिले सब की कहाँ पर खो गई है।

थक चुका , फिर भी चलता जा रहा हूँ

ढूढं पाऊँगा क्या मैं खोया हुआ घर।


कब चाहा है हमनें कभी

सभी का सुख

झाँक कर देखों जरा भीतर,

दूसरे का सुख तभी तक चाहते हैं

गर छुपा हो सुख अपना वहाँ पर।