Monday, June 29, 2009

परमजीत ने खरीद लिया छाता इक नया



जलती धरा है ऐसे जैसे दिल मेरा जला।
कोई बुलाओ बादलों को, बरसात को जरा।

अब यार भी गर्मी में मिलने नही आते,
धरती के पेड़ पौधों में कोई रंग भरो हरा।

मौसम है बादलों का मगर बादल कहीं नहीं,
भटकता ना हो कहीं वो मेरा, भूल कर पता।

मिल जाए कहीं तुमको, खबर उसको कर देना,
परमजीत ने खरीद लिया छाता इक नया।




Friday, June 26, 2009

मेरा फादर डे तो आज है.......


इन्सान का सोचा हुआ यदि हमेशा पूरा हो जाए तो सपनों को कौन देखेगा.......सपनों को कौन सजाएगा..।वैसे कोशिश तो सदा हमारी यही रहती है कि हमारे हर सपनें,हमारी हर सोच साकार होती नजर आए।लेकिन यह सब ख्याली पुलाव ही साबित होता है।जब भी हम पूरे मन से ,पूरी इच्छा से....जोश से किसी कामना को पूरा करने की अभिलाषा करते हैं,उतनी ही जोर की आवाज होती है सपनों के टुटनें की...... उतना ही गहरा दर्द महसूस होता है जितने प्यार से हम इन्हें सजानें मे लगे थे।..........यह बात नही है कि हमारे सपने हमारी कामनाएं हमेशा इसी तरह धराशाई हो कर हमारी आँखों मे खारा पानी भर कर चली जाती हैं.........हमारे भीतर हमेशा इसी तरह पीड़ा का एहसास करा कर गुम हो जाती हैं। कई बार..........या कहूँ बहुत बार......इन सपनों को पंख मिल जाते हैं.......इन कामनाओं को रास्ता नजर आनें लगता है....उस समय हमारे ये सपनें ऊँचे .... उस नीले आकाश में उड़नें लगता है.....उस समय मन करता है कि ऊपर और बहुत ऊपर, बस उड़ते ही जाएं........लेकिन हम सभी जानते हैं कि हमारी अपनी -अपनी एक सीमा होती है....हम एक सीमा के बाद स्वयं ही थक जाते हैं............उड़ने की चाह हमारी पूरी हो चुकी होती है.........ऐसा हमें उस समय लगता है.....यह बात अलग है.....कि कुछ समय बाद फिर वही चाह......कोई दूसरा रूप लेकर हमारे सामने खड़ी हो जाती है........और हम फिर उसी आकाश की ओर ताकनें लगते हैं........यह सिलसिला जीवन भर इसी तरह चलता रहता है।

कुछ साल पहले मैनें भी एक सपना देखा था.......उस समय सोचता था यह जरूर पूरा होगा।...उसका एक कारण था....पापा का हाथ बँटाते बँटाते अब हम उस मुकाम तक पहुँच गए थे......जिस सपने के पूरा होनें के बाद सपनें देखनें और उसके टूटनें पर, पाबंदी लगभग समाप्त हो जाती है.......... फिर सपनों को देखना.....उन्हें साकार करने की कोशिश करना ....अखरता नही है........ तब अगर वह सपनें टूट भी जाएं तो ज्यादा पीड़ा नहीं दे पाते।क्योंकि उस समय हम जिस जमीन पर खड़े होते हैं वह हमें टिके रहने का....खड़ा रहने का.........बहुत बड़ा कारण नजर आने लगती है।...यह सपना हर कोई देखता है........ वह बात अलग हो सकती है कि कुछ भाग्यशाली लोग ऐसे होते हैं कि उन्हें वह सपना विरासत में अपने पुरखों से ही प्राप्त हो जाता है।.......जी हाँ.......आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं .....वह सपना जो हर कोई देखता है........एक छोटा-सा प्यारा-सा......अपने घर का सपना।जिस मे वह अपनी मर्जी से अपनें मन मुताबिक रंग भर सके..................अपनी मर्जी से सजा सँवार सके।..............पापा का वह सपना अब पूरा हो गया था।वैसे यह सपना तो हम सब का था.... सभी बहुत खुश थे.........खुश भी क्यों ना होते....जीवन -भर के सघर्ष के बाद आज सफलता हाथ आई थी.....लेकिन इस सफलता और खुशी के पीछे कुछ ऐसी कड़वीं बातें भी छुपी थी.....जिन्होनें...पापा के मन को कई बार पीड़ित किया था।........अपनों की ही बातें......तानें..उलाहनें....से परेशान हो कर ही तो इस सपनें ने जोर पकड़ लिआ था... पापा चाहते थे कि जल्द से जल्द यह सपना पूरा हो जाए और अब वह दिन आ गया था। सो मन की खुशी के साथ शांती भी पापा के चहरे पर अब दिखनें लगी थी।

आप सोच रहे होगें यह सब क्यों लिख रहा हूँ आज..........हमेशा कविताएं ....गीत गज़ल.....लिखते लिखते.....आज अपने पापा के सपनें के बारे में........भले ही उनका यह सपना अपनें लिए कम हमारे लिए ज्यादा देखा गया था।......इसे लिखने का कारण मात्र इतना है कि इसी माह हम फादर डे मना रहे हैं........लेकिन....मैं इसे इस कारण से नही लिख रहा.........इस का एक दूसरा कारण है.............फादर डे तो २१ तारीख को मनाया जाता है और मैं मानता हूँ कि पिता को मात्र एक दिन की याद मे बाँध कर नही रखा जा सकता....बल्कि जिनके मन में अपने पिता के प्रति श्रदा व प्रेम होता है....उन के लिए अपनें पिता के दिए संस्कारों व सीख को जीवन में उतारना,अपनाना ही, उन की याद को ताजा रखने में सदा सहायक सिद्ध होता है ।..........लेकिन आज २६ तारीख है.......और यह वही तारीख है जब मेरे पापा मुझे आज से ११ साल पहले अकेला छोड़ कर उस अंतहीन यात्रा पर निकल गए थे......जहाँ से कोई वापिस नही लौटता.........यह बात नहीं है कि मैं पुर्नजन्म पर विश्वास नही करता.......गीता और अपने धर्म की बातों को मे हमेशा अपने भीतर महसुस करता हूँ।...लेकिन जानता हूँ.......अपने पापा को......अपनी उस यात्रा पर जानें से एक साल पहले ही तो उन्होनें एक रात अचानक यह कह कर मुझे आहत कर दिया था...........बोले थे-.....अब हमारी सभी इच्छाएं पूरी हो गई....सभी काम पूरे हो गए.........अब हमारे जानें का समय आ रहा है......।जिस समय पापा ने यह मुझ से कहा था उस समय उन के चहरे पर एक अनोखी -सी आभा नजर आ रही थी....उन का चहरा एक रोशनी -सी फैंकता प्रतीत हो रहा था।.......जबकि मैनें इस घर के सपनें के पूरा हो जानें के बाद का एक सपना देखा था.......मैनें देखा था......कि अब समय आ गया कि मैं अपने पिता के साथ भारत भ्रमण पर निकल जाँऊगा............लेकिन उन के शब्दों ने मेरे इस सपने की नींव हिला कर रख दी थी.........मैं समझ गया था कि मेरा यह सपना अब सपना ही रह जाएगा.........उस समय मेरे भीतर एक पीड़ा -सी भी महसुस होने लगी थी....और पापा के विश्वास के प्रति श्रदा भी।............मुझे याद है उस रात बहुत देर तक मैं पापा की इस बात को लेकर उन से उलझ पड़ा था.......कारण यह था कि वह सिर्फ मेरे लिए मात्र एक पिता ही नही रहे.......वह मेरे मित्र भी थे.......और मेरे गुरू भी......जिन के समीप्य से में वह सब कुछ जान सका था.....जिसे जाननें के लिए लोग जीवन भर इधर-उधर भटकते रहते हैं....लेकिन बहुत ही कम किस्मत वाले होते हैं जिन्हें वह सब ज्ञान और अनुभव मिल पाता है जो उन की अपनी इच्छा के अनुकूल होता है।......उसे मैनें अपने पिता से पाया है।.........वैसे तो शायद ही कोई ऐसा पल होगा.......जब उन की याद फीकीं पड़ी हो.......लेकिन आज पता नही क्युँ मन ने मजबूर किया कि उन के बारे कुछ लिखुँ।..........जिन्हें मैं इतने बरसों से मन में संजोय बैठा हूँ.....एक इतिहास की तरह।वैसे तो उन के साथ बिताया एक एक पल मुझे याद रहा हैं सदा.......उन के जानें के बाद भी मैं उस बीते हुए पल को जीनें लगता हूँ......भले ही यह सब हकीकत में नही होता .........सिर्फ मेरी कल्पना ही होती है....आज भी मैं कई बार चौंक के बाहर दरवाजे पर जा कर खड़ा हो जाता हूँ......लगता है जैसे अभी अभी तो वह बाहर गए हैं.......अभी लौटते ही होगें....... । लेकिन दूसरे ही पल मैं वर्तमान मे लौट आता हूँ। यह बात नहीं की हकीकत में नही जानता.........जानता हूँ......वह अब कभी नही लौटेगें......लेकिन फिर भी पता नहीं क्युँ......मैं बार बार ऐसा कर बैठता हूँ.....इसी लिए आज ये चंद शब्द लिख कर अपने आप को समझानें की कोशिश कर रहा हूँ........लेकिन क्या समझाना चाहता हूँ.....मैं स्वयं ही नही जानता........शायद मेरे यह चंद शब्द............अपने पिता को एक पुत्र की श्रदाँजलि ही हो.........

Saturday, June 20, 2009

तुम बिन कौन...

(चित्र गुगुल से साभार)

रात गई आया उजियाला फिर नयी प्रभात हुई,
तुम बिन कौन सहारा मेरा,जिसने मेरी बात सुनी।

तेरा लिए आसरा चलता अनजानें इन रस्तों पर,
कदम-कदम पर अपनों की हमनें तो बस घात सही।

क्या हम मंजिल पर पहुँचेगें तेरे किए इशारों पर,
या फिर रस्ते में टूटेगीं साँसों की सौगात कहीं।

रात गई आया उजियाला फिर नयी प्रभात हुई,
तुम बिन कौन सहारा मेरा,जिसने मेरी बात सुनी।

Thursday, June 11, 2009

आतंकवाद से हम क्यूँ हार रहे हैं

कितने धर्म हैं मेरे देश में
लेकिन एक अकेले
अधर्म को
नही हरा पा रहे हैं।
क्यूँ कि यहाँ सभी
अपनी-
अपनी ढपली बजा रहे हैं।
अपनी-
अपनी खिचड़ी अलग पका रहे हैं।

आज आतंक
वाद रूपी अधर्म से
कोई नही लड़ रहा।
जहाँ भी देखो-
हिन्दु का खून बहा,
मुस्लिम का खून बहा,
सिक्ख और ईसाई का खून बहा।
तुम से किस पागल ने कह दिया-
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
आतंकवादी का धर्म है।
आतंकवाद का नाम ही तो
असल मे अधर्म है।

जब तक तुम सभी धर्म वाले
आपस मे लड़ने की बजाए
अधर्म रूपी आतंकवाद
से
एक हो कर नही लड़ोगे।
तब तक तुम सभी यूँही
एक एक कर के मरोगे।

आओ! सभी धर्म वालों
सब को निमंत्रण देता हूँ।
चलो! हम सब एक हो जाएं।
इस आतंकवाद रूपी अधर्मी राक्षस की
जड़े काटे,
इस राक्षस को मार गिराएं।
यदि तुम्हारे धर्म में,
कोई अधर्मी धर्मी बन कर बैठा है,
उसे बाहर का रास्ता दिखाएं।
निष्पक्ष हो यह कदम उठाएं।

अब तो समझों
हम आतंकवाद से क्यूँ हार रहे हैं?
क्यूँकि हम आतंकवाद को नही,
हिन्दु,मुस्लिम,सिख,ईसाई को मार रहे हैं।
इसी लिए बार-बार
आतंकवाद से हार रहे हैं।
इसी लिए बार-बार
आतंकवाद से हार रहे हैं।

Wednesday, June 10, 2009

मुक्तक-माला - १८

हर तरफ आग ही आग है, कौन बुझाए ?
ऐसे जहाँ मे, कैसे कोई, घर बसाए ?
जिसनें कोशिशें की ,वह हार गया,
राख के ढेर में मुँह अपना कैसे छुपाए ?

रोशनाई हो जहाँ में,दीया जलाया है।
अन्धेरों को उजालों से सजाया है।
पता ना था,इन्सा के भीतर अंधेरा है,
ख्याल किसी को क्यूँ ना आया है?