Wednesday, July 22, 2009

प्रतिस्पर्धा


अब मुझे उड़ने दो!
देखना चाहता हूँ -
उस ऊँचे आकाश के पार
क्या है?
जहाँ वह भी
यह भी और मै भी,
पहुँचने की होड़ में,
एक दूसरे को धकियाते
चल रहें हैं।

लगता है जैसे
जो पहले पहुँचेगा
वही समेट लेगा
सब कुछ।
हम सभी
यही मान कर तो
चले जा रहे हैं शायद।

जब कि जानते हैं ,
आकाश के पार
हम भी ना रहेगें।
क्युंकि वहाँ सिर्फ
आकाश ही रह सकता है।

Sunday, July 12, 2009

बिखराव



अब तो अपने भीतर ही
अपनी साँसों से
जख्म होनें लगे हैं।
जो सजाए थे
मैने सपने कभी
वे रोने लगे हैं।
जरा -सी हवा के
झोकों से बिखर जाएंगे।
शायद फिर कभी
लौट कर ना आएगे।
यही सोच अब
सपनो मे रंग नही भरता।
लगता है कोई सपना
अब मेरा नही मरता।

आज की रात
चाँद भी बहुत उदास है।
लेकिन मेरे लिए
यह रात खास है।
बादलों का छेड़ना
चाँद को नही भाता।
उस को शायद
दिल लगाना नही आता।

प्यास गहरी हो
ओंस भी पी जाओगे।
शिकायत अपनों से
कैसे कर पाओगे?
मेरे मन उदास तुम
कभी मत होना।
अब अकेले में बैठ
मत रोना।