Saturday, January 8, 2011

मन की थाह......


मन की थाह पाना कठिन है पता नही ये सर्दी गर्मी उसको लगती है या शरीर को...अब स्व को कौन समझाये कि तुम्हे जो कहना है कहो....किसी की फिक्र क्या करनी? क्यों  उलझते रहते हो इन पचड़ों में। जिसे जैसा मन होगा अपनी समझ के घोड़े दौड़ायेगा.....तुम्हारे शब्दों का पीछा करेगा। जितनी दुरी होगी वही तक तो समझ पड़ेगी......। वैसे भी जब भी कोई अपने शब्दो का घोड़ा लेकर दौडता है तो शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि कोई उअस तक पहुँच पाया हो। लेकिन कुछ पहुँच भी जाते हैं ..... कई बार तो ऐसा आभास होता है कि कोई हमसे भी इतना आगे निकल जाता है....और यह तब एहसास होता है जब वह कोई शब्दो का पुलिंदा हमारे लिये छोड़ जाता है और हम उसमे अपने को एक नये रूप मे देखने लगते हैं।उस समय ऐसा लगता है कि यह शख्स हमारे ही रास्ते मे हम से आगे पहुँच गया है.....क्यों कि इस रास्ते को हम जानते हैं इस लिये यह जान पाते हैं कि हमारे ही रास्ते पर हमारे पीछे दोड़ने वाला यह शख्स हमे ही हमारे आगे आने वाले रास्ते का  नक्शा समझाता-सा लग रहा है।तब एक सुखद सी अनुभूति....एक तरंग सी महसूस होती है। मन कहता है कि तुम्हारे शब्दों ने सही अर्थ पा लिआ ।इस सागर मे सभी कुछ तो मौजूद है....बस खोजी नजर ही तो चाहिये हमें। लेकिन ये खोजी नजर के देखने कि शक्त्ति हरेक मे कभी एक-सी तो हो नही सकती और ना ही कभी होगी ही।तभी तो कोई इस मन के सागर की थाह नही पा पाता।लेकिन कोशिश तो सभी की जारी है...और आखिरी साँस तक जारी रहएगी भी। कोई चाहे या ना चाहे..घोड़े दोड़ते रहेगें ..सागर मे नौकायें हिचकोलों के साथ बहती रहेगी। कुछ धारा के साथ तो कुछ उस से विपरीत एक नयी दिशा की उम्मीद में। भले ही विपरीत धारा मे कोई आज तक कोई पहुँचा हो या ना पहुँचा हो। इस बात की परवाह है भी किसे?....बस! दोडों उसके साथ कभी जो तुम से आगे है या ऐसे ही दोड़ों...दोड़ना तो मन की मौज है...। यदि रूक कर खड़े हो जाओगे तो भी कोई सवाल थोड़े ही करेगा तुमसे..कि तुम रूक क्यों गये हो। अपने मालिक भी तो नही है हम.....लेकिन फिर भी कोई पूछने वाला नही है तुमसे कोई।....हाँ ! ये बात कुछ समझदारों को कहते सुना है कि अपने और दूसरों को दोड़ता देखने का अभ्यास करो। तभी शायद उस मन की थाह के करीब पहुँच पाओगे।ये मत समझना कि ये सब मैं तुमसे कहना चाहता हूँ....ऐसा बिल्कुल नही है...ये बातें तो उसी के लिये हैं जो ये सब बताता रहता है....हम उसकी कही बाते उसी को तो सुनाते रहते हैं। वही तो किया है आज मैने.......

Saturday, January 1, 2011

नया साल !!!!

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नयी सुबह का कर ले स्वागत
खुशीओं भरा तेरा साल हो।
महँगाई जितनी भी बढे....
बस! जेब मे तेरे माल हो।
देश- दुनिया की समस्याएं
जाएं सभी अब भाड़ में।
हरिक खुश हो जाए इस लिये
चढ़ाना सभी को झाड़ पे।
नया साल आता-जाता है
देश कहाँ कब बदला है।
नेता सभी पहचान चुके है
हर मतदाता.. पगला है।
इनको जितना लूट के खाओ
बस! चीखेगा चिल्लायेगा।
वोट  देगा और तान के चादर
जा अपने घर सो जायेगा।
देशवासीयो अब तो सुन लो
देश ना यूँ चल पायेगा।
हाथ मे डंडा लेकर निकलो
नया साल तभी आयेगा।