बस!
अब कोई सवाल
मेरे सामने
खड़ा मत करना।
क्यूँकि
मैं अब जीना चाहता हूँ।
ये सवाल मुझे ...
कभी जींनें नही देते।
जो आँखों से दिखता है .......
उसे पींनें नही देते।
जरा सवालों को
मुझ से दूर रखो-
ताकि मैं पीनें का स्वाद
महसूस कर सकूँ।
जीवन जिसे कहते हैं
उस मे ठहर सकूँ।
अब मेरे भीतर
कोई अभिलाषा मत जगाना।
क्यूँकि
हर अभिलाषा की
प्राप्ती के लिये-
अपने को भूलना पड़ता है।
लेकिन मैं अपने को
भूलना नही चाहता।
बस! मुझे जो दिखता है-
उसी को महसूस करना है।
उसी से
अपने जीवन में रंग भरना है।
मैं सोचना नही चाहता
लेकिन महसूस करता हूँ-
यह भी तो एक अभिलाषा है।
क्या मैं
इससे भी उबर पाऊँगा।
क्या कभी बिना
अभिलाषा के जी पाऊँगा?