Tuesday, January 22, 2013

गज़ल




बहते हैं आँसू ऐसे कोई झरना बह रहा हो।
ख़ामोश हैं जु़बानें, कोई मुर्दा सह रहा हो।


दिल टूटनें की आवाज कौन सुन सका है,
सपनों का शहर मेरा अब देखो ढह रहा है।

टूटे हुए दिलों में घर किसने कब बसाया,
हमें कदम-कदम पर अपनों ने  सताया।


शिकवा करें क्या, ये दस्तूर जिन्दगी का,

सदीयों से चल रहा है, हमनें नही बनाया।