Thursday, July 11, 2013

तीन कवितायें


 आदत

आदत नही
भूलने की
भूलें सताती हैं
कह्ते हैं ...
वो भटके राही को
राह दिखाती हैं
रोज नये दुश्मन
बन रहें हैं दोस्त.
आदते क्या सौंगाते
हमें दे के जाती हैं....


तन्हाई
तन्हा चलना
मुसीबत बन रहा है।
बहारें कब आई ..
कब गई....
पता भी ना चला।
राह चलते जो मिला
जी भर के ..
उसी ने है छला।


मजबूरी

सर्दी और महँगाई
दोनों
गरीब को
सुकड़ने पर
मजबूर करती है।
पता नही ये
पूँजी
पतियों से
क्यों डरती है....