Tuesday, January 27, 2015

डायरी के पन्नें - !

जीवन में कई बार ऐसे मौके आते हैं कि हम जो होते हैं उस से एकदम विपरीत सोचनें लगते हैं।जब कि हम खुद भी नही जानते कि ऐसा क्युं कर होता है।हमारा मन ,हमारा दिल, दिमाग अचानक हमारे लिए अनायास अंनजान सा क्युं हो जाता है। जब कि हम सदा ऐसा मानकर चलते हैं कि हम अपने आप को, अपने विचारों को, अपनी सोच को,बहुत अच्छी तरह समझते हैं।मैनें इस बारे मे बहुत सोचा और पाया कि वास्तव में हमारे भीतर यह परिवर्तन अचानक नही होता.....कहीं बहुत भीतर यह सोच या यूं कहे कुछ विचार ऐसे होते हैं जिन्हे हम स्वयं भी नही समझ पाते। हमारे अचेतन मन में बैठे रहते हैं.....लेकिन यह प्रकट नहीं हो पाते....क्यों कि जब तक इन्हें कोई बाहरी संबल या यूं कहे सहारा नही मिलता...यह मुर्दा पड़े रहते हैं।लेकिन किसी दिन अचानक इन का प्रकट हो जाना और ऐसा आभास दे जाना कि अब तक जो तुम सोच रहे थे या विचार रखते थे ,वह सब हमारा अपना ओड़ा हुआ एक आवरण मात्र था।जो शायद हम दुनिया को दिखाने के लिए या यूं कहे दुनिया को धोखा देनें के लिए ओड़े रहते हैं, असल में एक झूठा आवरण मात्र ही होता है।इस आवरण के हटते ही हम अपने आप को एक दूसरे आदमी के रूप में पाते हैं।जो एक बहुत गहरी सुखानुभूति या बहुत गहरे सदमे का कारण बन सकती है।इस अवस्था में पहुँचने के बाद मुझे लगता है कोई हानि नही होती।भले ही कुछ समय के लिए या ज्यादा समय के लिए..हम मानसिक रूप से अस्थिर हो जाते हैं या भावनात्मक रूप से उद्धेलित हो जाते हैं। हमे ऐसा लगने लगता है कि अब शायद हमारे लिए कुछ भी नही बचेगा........अब हमारा जीना मात्र मजबूरी बन कर रह जाएगा...लेकिन ऐसा कुछ भी नही होता.....समय एक ऐसा मरहम है जो सभी घावों को धीरे धीरे भर ही देता है।

इस तरह कुछ समय बीतनें पर जीवन में एक तरह का नयापन महसूस होता है.....जीवन को एक नये रास्ते पर चलने की प्रेरणा मिलती है।पता नही कब किस के मुहँ से सुना था कि जीवन की कठिनाईयां आने पर उन से भागों मत....बल्कि उन का हल खोजों। यदि असफलता मिलती है तो उस का कारण खोजों।कारण नही ढूंढ पाते....तो भी रुकना मत......क्युंकि यह जीवन तुम्हें जीनें के लिए मिला है।भले ही इस जीवन को तुम अपने ढंग से नही ढाल पा रहे हो.....तो फिर जिस ढंग से यह जीवन तुम्हें बहा रहा है उसी में बहते हुए ही उस का आनंद उठाओ।