Saturday, September 12, 2015

ऐ मेरे मन....

किसी के कहने पर कुछ कहना ...
किसी दूसरे की भावनाओ मे बहना..
अपने भीतर के प्रकाश को  कमजोर कर जाता है।
ऐ मेरे मन....
दूसरो को छोड़..
अपने भीतर के प्रकाश पर विश्वास कर...
वही तुझे रास्ता दिखा सकता है..
दूसरो का प्रकाश भटका सकता है ।


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मैने जब भी अपने को छोड़..
दूसरे पर विश्वास किया....
वह देर सबेर हमेशा टूटा है।
जीवन भर ....
वैसे तो साथ चलते हैं ...
ऐसे लोग..
लेकिन ...
मौका मिलने पर उसी अपने ने लूटा है।

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ऐ मेरे मन..
मुझे ये कहते शर्म नही आती..
मौका मिलने पर..
मौका छोड़ कर...
मै भी अक्सर पछताता हूँ।
अपने को सताता हूँ...
शायद जिन्दगी से  हारी बाजी को..
खुद की ईमानदारी बताता हूँ।
लेकिन भीतर जानता हूँ..
इसे ईमानदारी नही कहते..
लेकिन...
 सच मानने को कौन तैयार होता है?
वो ऐसा ही सच्चा है...
इसी लिये जीवन भर रोता है ।

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